आत्मा की मण्डी
एक बार एक देश में आत्माओं का अकाल पड़ गया। देश में त्राहि त्राहि मच गयी। नए बच्चों का जनम होना बंद हो गया। एक रात वहां आकाशवाणी हुई की अगर लोग बच्चे चाहते हैं तो आत्माओं को खरीद कर लायें। उसी रात लोग आत्माओं की खोज में निकल गए लेकिन कहीं कोई आत्मा बेचने वाले नहीं मिलते थे। लोगों की उम्मीद टूटने लगी की तभी किसी ने बताया की हस्तिनापुर में जंतर मंतर पर आत्माएं बिक रहीं हैं।
सुब लोगों ने उस तरफ मुंह किया और दोपहर तक वहां पहुंचे और देखे की वहां आत्माएं बिक रही हैं। सभी ने अपनी मन पसंद की आत्माए खरीदी , जो अपने बच्चेको पत्रकार बनाना चाहता था उसने पत्रकार की खरीदी और ऐसे ही तभी भीड़ में से आवाज़ आई की मैं तो अपने बेटे को कवि बनायुंगा , मुझे तो कवि की आत्मा चाहिए। तभी स्टेज से आवाज़ आई की यह कवि तो देश के सबसे महंगे हैं और कवि के मुंह से निकला ' लटक गया ' और कवि ने अपनी कविता शुरू कर दी। तभी भीड़ में से आवाज़ आई की कवि महंगे होंगे लेकिंग आत्मा तो उनकी बहुत सस्ती निकली। और वह सस्ते में कवि की आत्मा लेकर खुश हुआ .
लेकिन एक आदमी अपने बच्चे को जो मुख्या मंत्री बनाना चाहता था उसने कहा मुझे तो सुप्रीमो की आत्मा चाहिए। लेकिन हैरानी की बात तब हुई जब डॉकटरों ने कहा की सुप्रीमो के शरीर में आत्मा नहीं है। सब तरफ उसकी आत्मा की तलाश होनी लगी , लेकिन आत्मा नहीं मिली।
तभी भीड़ ने कहा इसकी इन्क्वारी होनी चाहिए। पुलिस ने रपट लिखी। लोग तरह तरह की बातें करने लगे। किसी ने कहा इसमें किसी देश भकत की आत्मा उत्तर आई थी जो अब इस के काम देख कर भाग गयी। कोई कह रहा था वह कुर्सी से चिपट गयी है।
सब अपनी बातें कर रहे थे और उधर सुप्रीमो टीवी पर कह रहा था उसकी आत्मा की चोरी में कोई षड़यंत्र है या कुर्सी में फेविकोल ज्यादा लगा होगा इसलिये कुर्सी से उतर नहीं रही , यह फेविकोल का दोष है , मेरा कोई दोष नहीं। उधर वह बेचारा जो अपने बच्चे को सुप्रीमो बनाना चाहता था मुंह लटकाये खली हाथ वापिस लौट रहा था।
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