एक समाज तीन तलों पर जी सकता है। इनमे से एक तल पर तो समाज रोज तरक्की करता है और खुशहाली बढ़ती है। दूसरे तल पर जिंदगी कटती है ,चीजें बढ़ती हैं ,पर धीरे धीरे आपस का भाईचारा खत्म होता है।.तीसरे तल पर जिंदगी बहुत डरी डरी होती है।
पहला तल आत्म ग्लानि का होता है जहाँ पर जब कोई गलती करता है उसे अंदर से महसूस होता है और वह सुधरता है।
दूसरे तल पर हम मानते हैं की जब तक दूसरे को नहीं पता चलता ठीक है। यहां गलती बुरी नहीं है दूसरे को पता चलना बुरा माना जाता है। यह एक शर्मसार समाज की निशानी है। जहाँ पाखंड बढ़ता है। हम अभी इस तल पर जी रहे हैं।
लेकिन कल पंजाब के दो मंत्रियों ने जिस ढंग से मोगा की वीरांगना की शहादत का मजाक उड़ाया है उससे लगता है की हम अब एक बेशर्म समाज की और बढ़ रहे है और दिन ब नीचे की और गिरेंगे।
क्या गुरुओं की धरती पर जिंदगी को बेशर्मी के तल तक गिरने देना चाहिए , आओ मिल कर सोचें।
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